Sunday, January 9, 2011

जनगणना 2011: पहली बार किन्नरों की गिनती

  जनगणना अधिकारी जब देश में एक अरब से अधिक लोगों का ब्यौरा तैयार करने के भागीरथी कार्य को आगे बढ़ाएंगे तब पहली बार उन्हें किन्नरों का भी लेखा-जोखा तैयार करना होगा क्योंकि सरकार ने 2011 की जनगणना में इनके लिए एक अलग श्रेणी बनाई है।
जनगणना की इस प्रक्रिया में किन्नरों को अन्य श्रेणी में शामिल किए जाने का समुदाय के लोगों और कार्यकर्ताओं ने स्वागत किया है। उनका मानना है कि इससे उन्हें समाज में पहचान मिलेगी और उन्हें मतदान और अपने खिलाफ अपराध को दर्ज कराने का बुनियादी अधिकार प्राप्त होगा।
इस समुदाय के लिए काम करने वाले और अस्तित्व समूह से जुड़े अंतरराष्ट्रीय कार्यकर्ता लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने कहा कि यह कदम उन्हें आगे बढ़ाने की दिशा में महत्वपूर्ण है। अभी तक हम अनजाने लोग थे, लेकिन अब हमें देश में एक दर्जा मिल सकेगा।
एचआईवी एडस पर संयुक्त राष्ट्र नागरिक संस्था कार्य बल में शामिल एकमात्र 32 वर्षीय किन्नर ने कहा कि उनकी ओर से वर्षों से इसके लिए गुहार लगाई जा रही थी और इस कदम से उन्हें बुनियादी अधिकार प्राप्त होने के साथ मनुष्य के रूप में सम्मान भी प्राप्त होगा।
वर्तमान में किन्नरों को पुरूष समुदाय के तहत शामिल किया गया है। सरकार की तकनीकी सलाहकार समिति (टीएसी) ने प्रस्ताव किया कि 2011 की जनगणना के दौरान पुरूषों को कोड एक, महिलाओं को कोड दो और किन्नरों को कोड तीन दिया जाएगा। इसको बाद में स्वीकार कर लिया गया। नाज फाउंडेशन की अंजली ने इस पहल का स्वागत करते हुए कहा कि समाज के अनजाने चेहरे से अब इन्हें एक पहचान मिल सकेगी।
उन्होंने कहा कि एक अनुमान के अनुसार, भारत में अभी करीब पांच लाख किन्नर हैं लेकिन जनगणना के माध्यम से इनकी गिनती करने से इनकी वास्तविक संख्या का पता चल सकेगा। उन्होंने कहा कि आप देश के किसी स्वयंसेवी संस्था से किन्नरों की संख्या के बारें में पूछे, तो उनकी ओर से कोई पुष्ट आंकड़ा नहीं दिया जा सकेगा। सरकार की ओर से इस समुदाय के लोगों की गिनती करने के फैसले के बाद सामाजिक कार्यकर्ता एवं विभिन्न संस्था शिविर लगाकर जागरुकता फैलाने के काम में जुट गए हैं।

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