Saturday, February 5, 2011

film itihaas

तकनिकी पहलुओ को दरकिनार कर देखा जाए,तो भारत वर्ष में सिनेमा के दुसरे तत्व काफी पहले से मोजूद थे | लोकनाटक, कठपुतली कला आदि के रूप में अभिनय तथा उसका मंचन प्रारंभ हो चूका था | परन्तु इन सब चीजों को काल्पनिकता में पिरो कर परदे पर साकार करने का कार्य कैमरा तथा तकनीकी उपकरण के अविष्कृत हो जाने के बाद ही मूर्त रूप ले सका | फोटोग्राफी के आविष्कार के साथ ही 1820 में ओप्टिकल खिलोने के रूप में सिनेमा कि नीव रख दी गयी थी | 1878 में एडवर्ड मुयाब्रिज ने जोट्रोप पर एक मिनट में केई तस्वीरे दिखाकर चित्रों में गतिशीलता लाने कि सफल कोशिश कि तप्त्पश्चात 1890 में केइनेतो - स्कोप का अविष्कार किया और चलचित्र प्रभाव को नया आयाम दिया  |इतना कुछ होने के बाद भी उस समय किसी ने यह नहीं सोचा होगा कि  सिनेमा संचार के इतने सशक्त माध्यम के रूप में उभरेगा |
   भारत में फिल्मों कि शुरुआत मूक फिल्मों के साथ हुई और ये दौर 1930 तक चला | श्री हिरा लाल सेन को भारत में चलचित्र का जनक मन जाता है | 1898 में उन्होंने राल्स बाईस्कोप कंपनी बनाई और चलचित्रों का प्रदर्शन किया | उन्होंने स्वनिर्मित कैमरे से 1901 से 1905 के बीच में बारह नाटक का फिल्म्कान किया | सेन ने ही सर्वप्रथम विज्ञापन फिल्मों का निर्माण प्रारंभ किया | उन्होंने अपनी फिल्मों में नये कोण से छायाकान,क्लोज-अप, टॉयटल्स प्रदर्शन आदि तकनीक का प्रथम प्रयोग किया |
         सवे दादा तथा हिरा लाल सेन के बाद चलचित्र निर्माण में कई लोगो ने अपना योगदान दिया |जैसे - के थाने वाला ,प्रो.एडरसन,जमशेद जी मदन आदि | पर वह व्यक्ति जिसने फिल्म जगत का स्वरुप ही बदल कर रख दिया, वो थे दादा साहब  फाल्के | उन्होंने भारत कि पहली कथा फिल्म राजा हरीशचंद का निर्माण 1913 में किया |  यह उन्ही के अथक प्रयासों का परिणाम था कि भारतीय फिल्म उद्योग ने समाज में अपनी जड़े जमानी शुरू कि |अपने इन्ही प्रयासों के बदोलत दादा साहब को भारतीय फिल्मों के जन्मदाता कि उपाधि से नवाज़ा गया |
      "राजा हरीशचंद" दादासाहब फाल्के के अथिक परिश्रम का परिणाम थी | इस फिल्म को बनाने में उन्हें आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ा | आठ महीने के संघर्ष के उपरात जब यह मूक फिल्म तैयार हुए,तो  दादा साहब फाल्के को उनकी म्हणत का प्रतिफल मिला | इस फिल्म से हुई अपार सफलता का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि एकत्रित आय को बैलगाड़ीयो से पोलिसे के देख रखाव में एक जगह से दूसरी जगह ले जाया जाता था | उन्होंने 1913 में ही मोहिनी भरमासुर और 1914 में सावित्री सत्यवान का निर्माण किया | तकनिकी दृष्टि दादा साहब फाल्के कि ये फिल्मे बेजोड़ थी | 1918 में दादा साहब फाल्के  ने हिंदुस्तान फिल्म कंपनी बनाई और उसके अंतरगत कई मशहूर फिल्मों का निर्माण किया | उन्होंने कथा फिल्मों के साथ साथ लघु फिल्मे/ डाक्युमेंट्रीयो का कि निर्माण किया | 64 वर्ष कि आयु में  उन्होंने एक सवाक फिल्म गंगोवतरन 1937 में बनाई | यह उनकी आखिरी फिल्म थी | 1937 में दादा साहब फाल्के ने फिल्म निर्माण से अलविदा भले ही कह दिया हो, पर तब तक उन्होंने भारतीय फिल्म जगत को वो नीव प्रदान कर दी थी,जिसके बल पर आज भारतीय सिनेमा जगत, जिसे हालही में सरकार द्वारा एक उद्योग का दर्जा प्राप्त हुआ है, कि गगनचुबी ईमारत शान से खाड़ी है | 







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