Sunday, February 6, 2011

2001 se vartmaan tak

इस दशक में जो वाक्य काफी प्रभावी रहा वह है "फिल्म जगत में सिर्फ दो ही स बिकते है - शाहरुख़ खान और सेक्स | ऐसा नहीं है कि इन दोनों विषयों के अलावा फिल्मे नहीं बनी ,पर जो प्रसार उनको मिला वो और किसी को नहीं | व्यवसायिकता, फिल्म जगत पर इस कदर हावी हो गई कि निर्माताओ को फिल्मों से बने पैसों के अलावा और कुछ दिखाई नहीं दे रहा | चाहे वोह नंगे बदन दिखा कर ही क्यों ना कमाया जा रहा हो | यह समय फिल्म जगत के इतिहास कि कुछ बड़े बजट की फिल्मों के लिए भी याद किया जाएगा | इनमे से कुछ है देवदास, दा हीरो, कोई मिल गया, दा राइजिंग, जोधा अकबर, कृष ,सिंह इस किंग, ब्लू ,शिवाजी, लव स्टोरी 2050 आदि |
  मूल्य विहीनता और ओछेपन की बात की जाए,तो भी ये दशक अव्वल नंबर का कहा जाएगा | तोबा तोबा, फ़न,हवस,जुली,जिस्म ,पाप , मर्डर,  कुछ ऐसी फिल्मे है जो मात्र पैसा कमाने के लिए बनाई गयी | इन फिल्मों ने न सिर्फ भारतीय फिल्मों का स्तर गिराया है बल्कि सामाजिक उन्माद को बढावा देकर नारी की प्रवित्र छवि को ठेस पहुंचायी है |
          इस दशक में पुरानी फिल्मों को एक नया लिबास में लपेटकर नये अंदाज़ में दर्शको के सामने प्रस्तुत किया गया | मुग़ल ए आज़म, ताजमहल,नया दौर, रामू की आग आदि  ऐसी ही फिल्मे है | कुछ निर्देशक लीक से हटकर फिल्म बनाने के लिए प्रचलित रहे | जिसमे हम दिल दे चुके सनम,ब्लैक, गुज़ारिश के संजय लीला भंसाली, लगान के आशुतोष गोवारिकर,कंपनी, फूँक, भूत,जंगल, आदि के  लिए राम गोपाल वर्मा और फिल्म पेज थ्री, फैशन,ट्रेफिक सिग्नल आदि फिल्मों  के  लिए मधुर भंडारकर आदि  प्रमुख रहे |  
  यह दशक अपनी उच्च कोटि के अभिनय और अदभुत तकनीक के लिए भी याद किया जाएगा |दिल चाहता है,कल हो ना हो, मुन्ना भाई एम बी बी एस ,मोहब्बतें , मैं हूँ ना , मई नेम इस खान आदि कुछ ऐसी ही फिल्मे है | आमिर खान की फिल्म "लगान" ने दर्शको को प्रभावित किया और यह फिल्म ओस्कर के लिए भी नामांकित की गई | इस अवधि की एक और विशेषता हिंगलिश फिल्मों का निर्माण रही | यह फिल्मे विदेशी तथा भारतीय सिनेमा का मिला जुला रूप रही | इन फिल्मों ने ना सिर्फ भारतीय जनता को बल्कि विदेशो में रह रहे अप्रवासी भारतीयों को प्रभावित किया | बेंड इट लाइक बेख्क्हम, मोंसून वेद्डिंग , मई नेम इस खान , कल हो ना हो , नमस्ते लन्दन आदि ऐसी ही फिल्मे है | 

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