Friday, February 25, 2011

ध्वनि-प्रवाह

रेडियो 
इलेक्ट्रोनिक मीडिया का रेडियो सस्ता व सुगम श्रय माध्यम है | इस यंत्र से दूर-दराज़ तक संदेश पहुँचाने की इस तकनीक का अविष्कार मारकोनी ने किया | जो बहुत लोकप्रिय सिद्ध हुआ | रेडियो ने संचार के क्षेत्र में एक बहुत बड़ी क्रांति पैदा की | सूचनाओ के अलावा गीत,संगीत,नाटक एव रूपक आदि सुन सकते है | रेडियो का श्रोता केवल दर्जी ही नहीं,बल्कि पानवाले से लेकर ड्राईवर या मजदूर तक है |
 रेडियो संचार-माध्यम के रूप में अंदर के लोगो का बाहरी लोगो से संप्रेषण कराता है | रेडियो शब्दावली में, सूचनाओ के संचार हेतु विधुत चुम्बकीय तरंगो के रूप में संकेतो की अंतरिक्ष के ज़रिये विसर्जन एव पहचान सम्मिलित है |
ध्वनि 
    रेडियो श्रव्य माध्यम है | दूर- दराज़ तक सन्देश पहुचाने वाला पोर्टबल उपकरण है | समाचार,गीत,नाटक,रूपक, आदि से प्रत्येक उम्र के मानव को अपनी ध्वनि से रिझाता है | कभी-कभी तो इसकी ध्वनि मानव को काम करने से रोक भी देती है | क्योंकि ध्वनि ही इस माध्यम के लिए सब कुछ है | ध्वनि ही दृश्य के निर्माण में सहायक होती है | घोड़ो की टाप,युद्ध क्षेत्र का वर्णन,पशु-पक्षियों की चेहचहाहट बारिश की बूंदे, दरवाज़े के खुलने की आवाज़, जोर से चीज़े पटकने,लाठी की ठक-ठक,गरम चाप की आवाज़,रेलवेस्टेशन के दृश्य आदि का आनंद रेडियो पर ध्वनि द्वारा ही लिया जा सकता है | फेड-आउट व फेड-इन रेडियो के आधारभूत व्याकरण है | यही उपकरण समय व दृश्य परिवर्तन ले लिए प्रस्तुत किये जाते है |
    ध्वनि प्रवाह :- 
 रेडियो एक दृश्यहीन माध्यम है | वह मात्र श्रव्य है यानि अंधों की दुनिया है लेकिन सर्वाधिक सुलभ साधन है | जनसाधारण तक और दूरदराज़ के प्रदेशों तक उसका सहज और सुगम है | इसमें ध्वनियाँ ही श्रोता तक संदेश पहुचाती है | श्रोता ध्वनियाँ के सहारे ही पूरे दृश्य की कल्पना कराता है | अत: रेडियो द्वारा निर्मित ध्वनि -संसार को तैयार करने के लिए विशेष कोशल उपेक्षित होता है | मधुर गंगाधर के शब्द में "रेडियो के लिए लिखना मात्र व्याकरण-नियंत्रित वाक्यों की रचना नहीं है | उसका अपना व्यक्तित्व होता है" |
 रेडियो में ध्वनि-प्रभाव का अपना महत्व होता है | ध्वनियाँ ही दृश्य-चित्र के निर्माण में सहायक होती है | घोड़ो की टापों का ध्वनि-प्रभाव युद्ध-प्रभाव युद्ध-क्षेत्र का कल्पना चित्र श्रोता के सम्मुख उत्पन्न कर सकती है तो पक्षीयों की चहक उगती भोर का दृश्य मानस-पटल पर खिंच सकती है | उल्लू  की चीखों से भयानक अँधेरी रातों का दृश्य पैदा हो सकता है और बारिश की बूंदों की आवाज़े मौसम के खुशनुमा का सहारा लेना पड़ता है उन्हें रेडियो कुछ ही ध्वनियों के रिकार्डो के माध्यम से सुगमता से प्रस्तुत कर सकने में समर्थ है | फेड-आउट (तेज़ से धीरे_धीरे मद्धिम ध्वनि) तथा फेड-इन  ( मद्धिम ध्वनि से धीरे धीरे तेज़ ध्वनि) रेडियो के आधारभूत व्याकरण हैं | एक तरह से ये "उपकरण " हैं जो समय की कमी अथवा दृश्य-परिवर्तन को सूचित करने के लिए प्रयुक्त किये जाते हैं |
  यह ध्वनि-प्रभाव तीन प्रकार के होते हैं :-

1. क्रिया ध्वनियाँ (ACTION SOUNDS):-
             दरवाज़े की दस्तकें,जोर से चीज़ें पटकने ,लाठी की ठक-ठक जैसी क्रियाओं की ध्वनियाँ का उपयोग भी रेडियो के पटकथाकार को करना होता है | चीजों को जोर से पटकना व्यक्ति के क्रोध का प्रतिक है | यदि बर्तन पटकने की आवाजों का चित्र उपस्थित किया जाए तो वातावरण के तनाव का एहसास श्रोता सरलता से कर सकते है | 

2.स्थल ध्वनियाँ (SETTING SOUNDS) :-
            किसी खास वातावरण का बोध करने वाली ध्वनियाँ स्थल ध्वनियाँ कहलाती हैं | उदाहरणर्थ, गरम चाय की आवाज़ें,कुली-कुली की पुकारें,गाड़ियों के आने की उद्घोषणाऍ आदि रेलवेस्टेशन प्लेटफार्म की गहमा-गहमी का दृश्य साकार कर देती हैं | इनका उपयोग बैकग्राउंड सैटिंग की तरह होती है |

3.प्रतिक ध्वनियाँ (SYMBOL SOUNDS) :- 
           नाटकीय स्थिति के सृजन के लिए विशेष प्रतीकात्मक ध्वनियों का उपयोग किया जाता है | हास्य नाटिकाओं के बीच ठहाकों, युद्ध-स्थल पर विस्फोटात्मक ध्वनियों तथा रोमांटिक दृश्यों में झरनों की ध्वनियों और पक्षीयों की चेहचहाटों का उपयोग भी रेडियो आलेख को सशक्त बनता है |      

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