Friday, February 25, 2011

ध्वनि-प्रवाह

रेडियो 
इलेक्ट्रोनिक मीडिया का रेडियो सस्ता व सुगम श्रय माध्यम है | इस यंत्र से दूर-दराज़ तक संदेश पहुँचाने की इस तकनीक का अविष्कार मारकोनी ने किया | जो बहुत लोकप्रिय सिद्ध हुआ | रेडियो ने संचार के क्षेत्र में एक बहुत बड़ी क्रांति पैदा की | सूचनाओ के अलावा गीत,संगीत,नाटक एव रूपक आदि सुन सकते है | रेडियो का श्रोता केवल दर्जी ही नहीं,बल्कि पानवाले से लेकर ड्राईवर या मजदूर तक है |
 रेडियो संचार-माध्यम के रूप में अंदर के लोगो का बाहरी लोगो से संप्रेषण कराता है | रेडियो शब्दावली में, सूचनाओ के संचार हेतु विधुत चुम्बकीय तरंगो के रूप में संकेतो की अंतरिक्ष के ज़रिये विसर्जन एव पहचान सम्मिलित है |
ध्वनि 
    रेडियो श्रव्य माध्यम है | दूर- दराज़ तक सन्देश पहुचाने वाला पोर्टबल उपकरण है | समाचार,गीत,नाटक,रूपक, आदि से प्रत्येक उम्र के मानव को अपनी ध्वनि से रिझाता है | कभी-कभी तो इसकी ध्वनि मानव को काम करने से रोक भी देती है | क्योंकि ध्वनि ही इस माध्यम के लिए सब कुछ है | ध्वनि ही दृश्य के निर्माण में सहायक होती है | घोड़ो की टाप,युद्ध क्षेत्र का वर्णन,पशु-पक्षियों की चेहचहाहट बारिश की बूंदे, दरवाज़े के खुलने की आवाज़, जोर से चीज़े पटकने,लाठी की ठक-ठक,गरम चाप की आवाज़,रेलवेस्टेशन के दृश्य आदि का आनंद रेडियो पर ध्वनि द्वारा ही लिया जा सकता है | फेड-आउट व फेड-इन रेडियो के आधारभूत व्याकरण है | यही उपकरण समय व दृश्य परिवर्तन ले लिए प्रस्तुत किये जाते है |
    ध्वनि प्रवाह :- 
 रेडियो एक दृश्यहीन माध्यम है | वह मात्र श्रव्य है यानि अंधों की दुनिया है लेकिन सर्वाधिक सुलभ साधन है | जनसाधारण तक और दूरदराज़ के प्रदेशों तक उसका सहज और सुगम है | इसमें ध्वनियाँ ही श्रोता तक संदेश पहुचाती है | श्रोता ध्वनियाँ के सहारे ही पूरे दृश्य की कल्पना कराता है | अत: रेडियो द्वारा निर्मित ध्वनि -संसार को तैयार करने के लिए विशेष कोशल उपेक्षित होता है | मधुर गंगाधर के शब्द में "रेडियो के लिए लिखना मात्र व्याकरण-नियंत्रित वाक्यों की रचना नहीं है | उसका अपना व्यक्तित्व होता है" |
 रेडियो में ध्वनि-प्रभाव का अपना महत्व होता है | ध्वनियाँ ही दृश्य-चित्र के निर्माण में सहायक होती है | घोड़ो की टापों का ध्वनि-प्रभाव युद्ध-प्रभाव युद्ध-क्षेत्र का कल्पना चित्र श्रोता के सम्मुख उत्पन्न कर सकती है तो पक्षीयों की चहक उगती भोर का दृश्य मानस-पटल पर खिंच सकती है | उल्लू  की चीखों से भयानक अँधेरी रातों का दृश्य पैदा हो सकता है और बारिश की बूंदों की आवाज़े मौसम के खुशनुमा का सहारा लेना पड़ता है उन्हें रेडियो कुछ ही ध्वनियों के रिकार्डो के माध्यम से सुगमता से प्रस्तुत कर सकने में समर्थ है | फेड-आउट (तेज़ से धीरे_धीरे मद्धिम ध्वनि) तथा फेड-इन  ( मद्धिम ध्वनि से धीरे धीरे तेज़ ध्वनि) रेडियो के आधारभूत व्याकरण हैं | एक तरह से ये "उपकरण " हैं जो समय की कमी अथवा दृश्य-परिवर्तन को सूचित करने के लिए प्रयुक्त किये जाते हैं |
  यह ध्वनि-प्रभाव तीन प्रकार के होते हैं :-

1. क्रिया ध्वनियाँ (ACTION SOUNDS):-
             दरवाज़े की दस्तकें,जोर से चीज़ें पटकने ,लाठी की ठक-ठक जैसी क्रियाओं की ध्वनियाँ का उपयोग भी रेडियो के पटकथाकार को करना होता है | चीजों को जोर से पटकना व्यक्ति के क्रोध का प्रतिक है | यदि बर्तन पटकने की आवाजों का चित्र उपस्थित किया जाए तो वातावरण के तनाव का एहसास श्रोता सरलता से कर सकते है | 

2.स्थल ध्वनियाँ (SETTING SOUNDS) :-
            किसी खास वातावरण का बोध करने वाली ध्वनियाँ स्थल ध्वनियाँ कहलाती हैं | उदाहरणर्थ, गरम चाय की आवाज़ें,कुली-कुली की पुकारें,गाड़ियों के आने की उद्घोषणाऍ आदि रेलवेस्टेशन प्लेटफार्म की गहमा-गहमी का दृश्य साकार कर देती हैं | इनका उपयोग बैकग्राउंड सैटिंग की तरह होती है |

3.प्रतिक ध्वनियाँ (SYMBOL SOUNDS) :- 
           नाटकीय स्थिति के सृजन के लिए विशेष प्रतीकात्मक ध्वनियों का उपयोग किया जाता है | हास्य नाटिकाओं के बीच ठहाकों, युद्ध-स्थल पर विस्फोटात्मक ध्वनियों तथा रोमांटिक दृश्यों में झरनों की ध्वनियों और पक्षीयों की चेहचहाटों का उपयोग भी रेडियो आलेख को सशक्त बनता है |      

Sunday, February 6, 2011


अप्रवासी भारतीयों पर फिल्मे

      इस अवधि की एक और विशेषता हिंगलिश फिल्मों का निर्माण रही | यह फिल्मे विदेशी तथा भारतीय सिनेमा का मिला जुला रूप रही | इन फिल्मों ने ना सिर्फ भारतीय जनता को बल्कि विदेशो में रह रहे अप्रवासी भारतीयों को प्रभावित किया | बेंड इट लाइक बेख्क्हम, मोंसून वेद्डिंग , मई नेम इस खान , कल हो ना हो , नमस्ते लन्दन आदि ऐसी ही फिल्मे है | 

2001 में आई  "कहो ना प्यार है"  उस साल की सबसे बड़ी हिट थी | हृतिक रोशन ने अपनी फ़िल्मी करियर की शुरुआत इसी फिल्म से की | इसमें उन्होंने डबल रोल में काफी अच्छा अभिनय किया |उसमे इन्होने रोहित और राज की भूमिका निभाई| रोहित जो आम इंसान होता है और राज एक प्रवासी भारतीय होता है जो कैनेडा में रहता है | अपने प्यार को पाने क लिए वो इंडिया तक चला आता है | एक्शन और रोमांस की मिली जुली इस फिल्म को लोगो ने बहुत सराहा |
     इसी वर्ष मानसून वेद्डिंग फिल्म भी भी आई जो एक शादी को  लेकर थी ,उस शादी में अलग अलग देशो से आ रहे प्रवासियों का बहुत अच्छे  ढंग से प्रस्तुत किया है |
       "कभी ख़ुशी कभी गम" 2001 में आई इसकी मुख्य भूमिका में शाहरख खान और अमिताब बचन है | घर में एक बेटे का अपनी मर्ज़ी से फेसला लेने पर उस पर क्या बीतती है, और वो गुस्से में आकर बेटे को घर से जाने को कहते है ,इसके बाद उसका बेटा कहा है क्या कर रहा है उसे कोई मतलब नहीं| तब उसका छोटा बेटा हृतिक रोशन उन्हें ढूँढने लन्दन जाता है जहाँ शाहरुख़ खान एक प्रवासी बन कर रह रहा होता है | ये फिल्म पूरे परिवार के लिए है और यह फिल्म 2001 की हिट फिल्म थी.|
    2002 में आई "मुझसे दोस्ती करोगे" इस फिल्म में कारन की भूमिका में हृतिक रोशन है | उनका परिवार इंडिया छोड़ कर लन्दन चला जाता है वह से इंडिया में नेट पर चेटिंग करता है पूजा से | लन्दन में रहते हुए भी उनके दिल में इंडिया बसा है | कारन शादी  करने के लिए लन्दन से परवार क साथ इंडिया आता है | इंडिया की संस्कृति बोहत अच्छे  ढंग से प्रस्तुत की है |
      "कल हो ना हो" 2003 शाहरुख़ खान की हिट फिल्म है | इसमें उन्होंने एक हार्ट पेशांत की भूमिका निभाई है |वोह अपना इलाज करवाने अमेरिका जाते है जहा उनकी मुलाकात नेना से होती है| वो एक अमेरिका की कालोनी है जहाँ प्रवासी भारतीय एक साथ रहते है | वो  खुद आखिरी पल गिन रहा है ज़िन्दगी के इस लिए सबको को खुश रहना और हसना गाने को कहता रहता है| उसे खुद को नेना से मोहब्बत हो जाती है मगर वोह नेना से नहीं कहता और नेना की शादी सैफ अली खान से करवा देता है और अंत में उसकी मौत हो जाती है | पूरी फिल्म फॅमिली के साथ देख सकते है |

  "रामजी लन्दनवाले " 2005 में आई इसमें माधवन ने एक खाने पकाने वाले का किरदार निभाया है | वो खाना पकाने के लिए एक व्यक्ति के बुलाने पर लन्दन जाते है पर जेसे ही वो वहां पोहंचते है उनकी मृत हो जाती है | वो परेशां इधरउधर घुमते है और फिर एक प्रवासी भारतीय के पास काम करने लगते है और लन्दन उन्हें रास नहीं आता वहा का कल्तुरे तहज़ीब उन्हें पसंद नहीं आती और वो वापस इंडिया आ जाते है अपने देश |फिल्म को काफी अच्छा प्रस्तुत किया है और माधवन की एक्टिंग भी शानदार रही |
          "नमस्ते लन्दन" 2007 में आई | मुख्य भूमिका में अक्षय कुमार और कैटरीना कैफ थी |इस फिल्म को लोगो ने बहुत पसंद किया | इसमें भारतीय संकृति और परंपराओ को बोहत अच्छे से प्रस्तुत किया है | ये फिल्म हिट हुए इसमें इंडिया के लड़के की शादी लन्दन में पली बड़ी लड़की से इंडिया में लाकर शादी करवा देता है पर वोह वहां खामोश रहती है और वापस लन्दन आकर उस शादी को एक मज़ाक बताती है | इस फिल्म में किस तरह से अब उससे समझेंगे ये देखने लायक है |
        "सिंह इस किंग " 2008 में आइ| ये फिल्म उस साल की हिट फिल्म थी | इस फिल्म में पंजाब के एक बुडे बाप के पुत्र ऑस्ट्रेलिया में रह रहे है | फुल कॉमेडी के साथ इस फिल्म को बोहत अची तरह से प्रस्तुत किया गया है | इसमें लकी इंडिया से ऑस्ट्रेलिया अपने दोस्तों को वापस अपने वतन लाने के लिए जाता है और खुद वही पर काफी दिन तक रुक जाता है |और आखिर में वोह कामयाब होता है अपने दोस्तों को वापस उनके घर लेन में |फिल्म का गाना ""तुझे घोड़ी किन्ने चदय" काफी मशहूर हुआ
       "न्यू योंर्क" 2009 में आई |इस फिल्म में 11 सितम्बर पे जो हमला हुआ था, उससे क्या बीती अमेरिका में रहने वाले भारतीयों पर और उससे परेशान होकर लोगो ने क्या कदम उठाए |काफी कुछ  प्रस्तुत किया है |
"मई नेम इज खान " 2010 में आई | इस फिल्म को भारत में तो पसंद किया गया पर बहार देशों में कुछ ज्यादा ही पसंद किया गया |इस फिल्म में शाहरुख़ खान ने रिजवान खान की भूमिका निभाई है, जो दिमागी रोगी है | उसका छोटा भाई उसे अमेरिका ले जाता है और अपनी पत्नी से उसका इलाज भी करवाता है जो एक डॉक्टर है | उसे मंदिरा (काजोल) से प्यार हो जाता है और शादी भी हो जाती है |एक मुस्लिम नाम का होना अमेरिका में साब भारतीयों के साथ ग़लत हो रहा है अपने नाम को लेकर रिजवान को भी अमेरिका में काफी परेशानियों का सामना करना पढता है |सबसे परेशां होकर वो थान लेता है की में अमेरिका के प्रेसिडेंट से मिलूँगा और और वोह सफ़र पर निकल पढता है |

भारतीय मूल के सिनेमा नेमसेक के साथ बढ़ता है

Mira Nair's new film transcends the cliches of the immigrant story by taking the perspective of the silent first generation and in so doing offers a moving movie experience. मीरा नायर की नई फ़िल्म चुप पहली पीढ़ी के नजरिए को लेकर है और ऐसा करने में प्रदान करता है एक चलती फिल्म के अनुभव आप्रवासी कहानी का cliches अतिक्रमण
नेमसेक
Bridging generations... ब्रिजिंग पीढ़ियों ... The Namesake नेमसेक
Tongues on Fire , the annual film festival showcasing Asian women in cinema from across the globe, has stayed true to its name. आग पर जीभ , वार्षिक फिल्म दुनिया भर से सिनेमा में महिलाओं एशियाई त्योहार प्रदर्शन, इसके नाम को सच है रुके थे. Covering Indian film-making from "here and there", it offers radical cinema (such subjects as child widows, mental illness) alongside unusual stories (blood money, the Asian presence in Scotland), many of them hitherto untold. कवर भारतीय फिल्म से "यहाँ और वहाँ 'बना रही है, यह असामान्य कहानियों के साथ कट्टरपंथी (बच्चे विधवाओं के रूप में विषयों, मानसिक बीमारी) सिनेमा (रक्त पैसा, स्कॉटलैंड में एशियाई उपस्थिति) प्रदान करता है, उनमें से कई अब तक अनकही.
The festival's official opener at Bafta was Mira Nair 's The Namesake , released in the UK at the end of this month. इस महोत्सव में Bafta सलामी बल्लेबाज आधिकारिक था मीरा नायर की द नेमसेक , महीने के अंत में यह ब्रिटेन में जारी किया. It was a film that I watched with some resistance. यह एक फिल्म है कि मैं कुछ प्रतिरोध के साथ देखा गया था. Nair (who was behind Salaam Bombay, Monsoon Wedding and Kama Sutra among others) is now based in America. नायर (जो सलाम बॉम्बे, मानसून और दूसरों के बीच कामसूत्र शादी के पीछे गया था) अब अमेरिका में आधारित है. So the cinema from "here" is less about geographical region than that diasporic imagination that fuelled everything from My Beautiful Launderette to Bride & Prejudice, and Bend It Like Beckham. सिनेमा से इतना है कि लोग प्रवासियों कल्पना है कि स्त्री और पक्षपात करने के लिए मेरी सुंदर Launderette से सब कुछ ईंधन, और यह बेखम की तरह बेंड से भौगोलिक क्षेत्र के बारे में कम "यहाँ" है.
At first glance, The Namesake seems intent on dusting off and resurrecting the oldest of immigrant cliches. पहली नज़र में, नेमसेक बंद पींछना और आप्रवासी cliches का सबसे पुराना resurrecting पर आमादा है. Based on Pulitzer prize-wining author Jhumpa Lahiri's work of the same name, it tells that well-trodden tale of a marriage arranged in India, consummated and continued in the US and decorated in the usual places with culture conflicts and second-generation rebellion. एक ही नाम के पुलित्जर पुरस्कार wining लेखक झुंपा है लाहिड़ी काम के आधार पर, यह एक भारत, consummated जारी रखा और अमेरिका में और संस्कृति संघर्ष और दूसरी पीढ़ी के विद्रोह के साथ सामान्य स्थानों में सजाया में व्यवस्था की शादी की है कि अच्छी तरह से दलित कहानी कहता है. Much eye-rolling seems inevitable. ज्यादा आंखें रोलिंग अपरिहार्य लगता है.
After all, identity crises, generational conflict and cultural confusion were, and to some extent still are, considered to be synonymous with the Asian immigrant experience. सब के बाद पहचान संकट, पीढ़ीगत संघर्ष और सांस्कृतिक भ्रम थे, और कुछ अभी भी एशियाई आप्रवासी अनुभव का पर्याय माना जाता है, सीमा तक. And while these issues may be very real, they have become an albeit more benevolent stereotype; a kind of cultural pathology that neatly summarises the immigrant psyche. और जब तक इन मुद्दों पर बहुत ही वास्तविक हो सकते हैं, वे और अधिक उदार छवि यद्यपि एक हो गए हैं, सांस्कृतिक विकृति का एक तरह का है कि बड़े करीने से आप्रवासी मानस का सार.
But the genius of this film is that it completely sidesteps this. लेकिन इस फिल्म की प्रतिभा है कि यह पूरी तरह से इस नजरअंदाज कर देता है. By tilting the camera in another direction, by centring the story on the parents, not the kids, it tells a different story. दूसरी दिशा में, बच्चों को नहीं माता पिता पर कहानी केंद्रित करके कैमरा, झुकने से, यह एक अलग कहानी कहता है. With poignancy and wit, it offers a kind of prehistory of immigration, throwing light on the silent first generation, a perspective that has rarely been explored. मार्मिकता और बुद्धि के साथ, यह आव्रजन के प्रागितिहास का एक प्रकार प्रदान करता है, चुप पहली पीढ़ी, एक दृष्टिकोण है कि शायद ही कभी पता लगाया गया है पर प्रकाश फेंक. Irrfan Khan and Tabu who play the parents, Ashok and Ashima, effortlessly steal the show in what becomes a rather moving experience. इरफान खान और तब्बू जो माता पिता के खेल, अशोक और आशिमा, अनायास क्या बल्कि एक चलती अनुभव हो जाता है में इस शो चोरी.
Nair's film is characteristically good-looking, with striking cinematography. नायर की फिल्म विशेषता से सुंदर हड़ताली छायांकन के साथ है. But most distinctive is its tacit assertion to consider not where you come from, but who you come from. लेकिन सबसे विशिष्ट है अपने मौन दावे पर विचार करने के लिए नहीं तुम कहाँ से आया है, लेकिन आप कौन से आते हैं. As much about individual history and heritage as about cultural belonging, this is an idea with broad appeal. ज्यादा के बारे में व्यक्तिगत रूप के बारे में इतिहास और सांस्कृतिक विरासत से संबंधित के रूप में, इस व्यापक अपील के साथ एक विचार है. With this film, it appears that the cinema of the diaspora has come of age. इस फिल्म के साथ, यह प्रतीत होता है कि आप्रवासी सिनेमा उम्र के आ गया है.

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90 के दशक की शुरुआत में अमिताभ बच्चन का गुस्सैल नौजवान अप्रासंगिक होता दिखा। 90 के  दशक में भारत बदलानई नीतियां आ गईं और तरक्की की ओर जाने के रास्ते बदल गएतो बाग़ी तेवरों के लिए दर्शकों के लिए जो अपील थीवो ख़त्म होने लगी।


रेग्युलराइज़ेशन होने लगा तो नए हिंदुस्तान को दिखाने के लिए सिनेमा में नए चेहरों की ज़रुरत पड़ी। इस मौके को वैश्विक भारतीय बने राज मल्होत्रा यानी शाहरुख ख़ान ने थाम लिया। इनका किरदार नौकरी के लिए कतार में नहीं लगता उसे भूख की चिंता नहीं है, वह एनआरआई  है  और अपने प्यार को पाने लंदन से पंजाब के गांव तक आ जाता है।
पूरब aur Pachhim Purab Aur Pachhim was the second directorial venture of actor, producer, writer Manoj Kumar (Bollywood's Clint Eastwood of the 1970s, whose works were loaded with a heavy dose of patriotism). पूरब aur Pachhim अभिनेता, निर्माता की दूसरी निर्देशित फिल्म थी, लेखक मनोज कुमार (1970, काम करता है जिनकी देशभक्ति के एक भारी खुराक के साथ लोड की बॉलीवुड की क्लिंट Eastwood). In the highly entertaining P&P, Kumar (always named Bharat) visits the UK to find the Indian immigrant population living a depraved life, where the men dress as hippies (resembling characters from the Sgt Pepper Lonely Hearts Club Band album cover), and women with blond wigs smoke and drink. बेहद मनोरंजक पी एण्ड पी कुमार (हमेशा भरत नाम) ब्रिटेन का दौरा करने के लिए भारतीय आप्रवासी एक ज़िनाकार जीवन है, जहां पुरुषों हिप्पी (सार्जेंट पेप्पर सूनादिल क्लब बैंड एल्बम कवर से दिखने अक्षर) के रूप में पोशाक आबादी जीने, और महिलाओं के साथ मिल में गोरा wigs धूम्रपान और पेय. Finally the virtues and traditions of the East, and the motherland, triumph over the evils of the West. अंत में गुण और पूर्व की परंपराओं, और मातृभूमि, पश्चिम की बुराइयों पर विजय. No surprises, but the songs and the characters are memorable. कोई आश्चर्य है, लेकिन गीतों और पात्रों यादगार हैं. - Aseem Chhabra - असीम छाबड़ा
Mississippi Masala मिसिसिपी मसाला
For her sophomore venture, after the success of the Oscar nominated Salaam Bombay, Mira Nair took on the subject of diaspora, dislocation and finding home in an alien land. उसे sophomore उद्यम के लिए, ऑस्कर की सफलता के बाद सलाम बॉम्बे नामित, मीरा नायर एक विदेशी देश में प्रवासी, अव्यवस्था और खोज घर के विषय पर ले लिया. Mississippi Masala (1991) tracks the life of one Indian family, expelled from Uganda during Idi Amin's regime and settling down in America's south to run a motel. मिसिसिपी मसाला (1991) ईदी अमीन के शासन के दौरान एक भारतीय परिवार, युगांडा से निष्कासित कर दिया की जीवन पटरियों और अमेरिका के दक्षिण में बसने के एक मोटेल चलाने के लिए. The adult daughter of this family (newcomer Sarita Choudhury) meets an African-American carpet cleaner (a young and handsome Denzel Washington). इस परिवार (नवागंतुक सरिता चौधरी) के वयस्क बेटी एक अफ्रीकी अमेरिकी कालीन क्लीनर (एक जवान और सुंदर Denzel वॉशिंगटन) से मिलता है. In making her protagonists fall in love, and using her quirky brand of humor, Nair explores, sex, race and class – all explosive issues for the Indian American community. भारतीय अमेरिकी समुदाय के लिए सभी विस्फोटक मुद्दों - कर उसे मुख्य पात्र प्यार में गिर है, और उसके नायर की पड़ताल,, लिंग, जाति और वर्ग के हास्य quirky ब्रांड का उपयोग करने में.
Dilwale Dulhania Le Jayenge दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे
One of the earliest Bollywood films touching on the lives of Indians living abroad, Dilwale Dulhania Le Jayenge is as lovable and fresh today as it was in 1995, when it was released. जल्द से जल्द बॉलीवुड विदेशों में रह रहे भारतीयों के जीवन पर मार्मिक फिल्मों की, दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे आज के रूप में प्यारा और ताजा के रूप में इसे 1995 में, जब इसे जारी किया गया था. London-born Raj Malhotra (Shah Rukh Khan) falls in love with simple-but-serious Simran Singh (Kajol) during her trip to Europe with friends. लंदन में जन्मे राज मल्होत्रा (शाहरुख खान) दोस्तों के साथ उसे यूरोप यात्रा के दौरान साधारण है लेकिन गंभीर सिमरन सिंह (काजोल) के साथ प्यार में गिर जाता है. Alas, she's engaged to be married to a man in India. काश, वह भारत में एक आदमी को शादी करने लगे है. Raj pursues Simran to her native village in Punjab and tries to win over her family's blessings for their love. राज उसे पंजाब के पैतृक गांव में सिमरन के कर्मों को करने के लिए और अधिक अपने प्यार के लिए उसके परिवार के आशीर्वाद जीतने की कोशिश करता है. His attempts -- sometimes comic, but always endearing --- make the audience fall in love with Raj. उनके प्रयास - कभी कभी हास्य, लेकिन हमेशा endearing --- राज के साथ प्यार में गिर कर दर्शकों. In typical Yash Raj Films' style, the blockbuster is replete with beautiful people and beautiful places, not only in Europe but also in India. ठेठ यश राज फिल्म्स की शैली में, फिल्म खूबसूरत लोगों और सुंदर स्थानों, न केवल यूरोप में भी, लेकिन भारत में से परिपूर्ण है. One of the many hit songs of the movie is shot with the backdrop of a gorgeous, bright-yellow mustard field of Punjab. एक फिल्म के कई हिट गीतों में से एक भव्य, उज्ज्वल पीले पंजाब के सरसों क्षेत्र की पृष्ठभूमि के साथ गोली मार दी है. The movie tries, and succeeds, to tug at the hearts of Indians living abroad who try hard to maintain their Indian culture seven seas away. फिल्म कोशिश करता है, और tug करने के लिए, विदेशों में रह रहे भारतीयों के दिलों जो कठिन प्रयास करने के लिए अपने भारतीय संस्कृति सात समंदर दूर बनाए रखने में सफल होता है. It's a Bollywood must-see and changed the NRI formula flick forever, for the better. यह एक बॉलीवुड-देखना होगा है और एनआरआई सूत्र झटका हमेशा बेहतर करने के लिए, बदल दिया है. -- Shefali Anand - शेफाली आनंद
Bend It Like Beckham बेखम की तरह यह Bend
Good for a laugh even if you aren't a fan of soccer or David Beckham. एक हंसी के लिए अच्छा भी अगर आप फुटबॉल या डेविड बेखम के एक प्रशंसक नहीं हैं. Eighteen-year-old Jessminder Bhamra dreams of playing the sport professionally. अठारह वर्षीय Jessminder Bhamra खेल पेशेवर खेलने के सपने. She joins a women's team after her talent is discovered by fellow soccer devotee Jules, played by Keira Knightley. वह एक महिला टीम में शामिल करने के बाद उसकी प्रतिभा साथी फुटबाल भक्त जूल्स, Keira Knightley द्वारा निभाई द्वारा की खोज की है. Her Sikh family doesn't approve, though, and would rather she find a husband, get into a good university, and spend more time in the kitchen making rotis. उसे सिख परिवार को मंजूरी, हालांकि नहीं करता है, और नहीं बल्कि वह एक पति मिल जाएगा, एक अच्छा विश्वविद्यालय में मिलता है, और रोटी बनाने रसोई में अधिक समय बिताते हैं. With the help of Jules and soccer coach Joe (portrayed by the handsome Jonathan Rhys Meyers), Jess learns to pursue what she wants. जूल्स की मदद और फुटबॉल कोच जो (सुंदर योनातन Rhys Meyers द्वारा चित्रित) के साथ, जेस पीछा करने के लिए वह क्या चाहता है सीखता है. Set in London, the movie is genuinely funny and uplifting without being cheesy. लंदन में सेट, फिल्म वास्तव में हास्यास्पद और पनीर का उत्थान किया जा रहा बिना है. The characters are well developed, and Parminder Nagra does a fine job in playing Jess as a normal but conflicted teenager who has to balance her goals with those of her Punjabi parents. अक्षर अच्छी तरह से विकसित कर रहे हैं और परमिंदर नागरा एक सामान्य लेकिन conflicted किशोरी जो उसे पंजाबी माता पिता के उन लोगों के साथ अपने लक्ष्यों को शेष है के रूप में जेस खेल में एक अच्छा काम करता है. –Anjali Athavaley -Athavaley अंजलि
Kal Ho Naa Ho कल हो न हो
Set in modern-day New York City, this film will appeal even to those who are not fans of old-school Bollywood movies. सेट आधुनिक दिन न्यूयॉर्क शहर में, इस फिल्म में वे भी जो पुराने स्कूल बॉलीवुड फिल्मों के प्रशंसक नहीं हैं के लिए अपील करेंगे. Naina Catherine Kapur, played by Preity Zinta, has a rough home life. नैना कैथरीन कपूर, प्रीति जिंटा के द्वारा खेला जाता है, किसी न किसी घर जीवन है. That changes, though, when she meets Aman Mathur (Shahrukh Khan), and falls for him. कि परिवर्तन, हालांकि, जब वह अमन (शाहरुख खान) माथुर, मिलता है और उसके लिए गिर जाता है. Of course, a love triangle complicates things. बेशक, एक प्रेम त्रिकोण बातें पेचीदा हो. Naina's friend Rohit is in love with her. है नैना दोस्त रोहित उसके साथ प्यार में है. The plot twist comes when Aman tries to dissuade Naina's feelings by telling her he is married. भूखंड मोड़ आता है जब अमन के लिए उसे बता वह शादी कर रहा है के द्वारा है नैना भावनाओं को रोकने की कोशिश करता है. The reason may make you weep shamelessly, and the result is that the movie feels more complex than your typical "boy meets girl and fights for her" Bollywood plotline. कारण तुम बेशर्मी रो कर सकता है, और नतीजा यह है कि फिल्म अपने ठेठ और अधिक से अधिक जटिल लगता है बॉलीवुड plotline "लड़का उसके लिए लड़की और झगड़े मिलता है". The soundtrack is catchy and includes the upbeat "It's the Time to Disco" and "Pretty Woman" as well as the movie's more heartfelt theme song. ध्वनि आकर्षक है और उत्साहित "यह डिस्को करने के लिए समय है" और "खूबसूरत महिला 'के रूप में अच्छी तरह से फिल्म के अधिक हार्दिक थीम गीत भी शामिल है. –Anjali Athavaley -Athavaley अंजलि
Salaam Namaste सलाम नमस्ते
If you can get over Preity Zinta's shrieking, this movie—also starring a hunky, oft disrobed Saif Ali Khan—is endearing, hilarious and thought-provoking. यदि आप प्रीति जिंटा लगाना खत्म हो सकते हैं, यह फिल्म भी एक hunky, सैफ अली खान अभिनीत-disrobed बहुधा प्यारी उल्लसित, और सोचा उत्तेजक है. A medical student who freelances as a radio jockey falls in love with a chef and the two decide to move in together to see if the relationship can work. एक चिकित्सा छात्र जो freelances के रूप में एक रेडियो जॉकी एक महाराज के साथ प्यार में गिर जाता है और दो को साथ में ले जाने के लिए अगर रिश्ता काम कर सकते हैं फैसला. Both flee their native India for Australia to pursue their dreams and end up moving in together. दोनों अपनी मूल भारत पलायन ऑस्ट्रेलिया को अपने सपनों का पीछा करने के लिए और अंत में एक साथ जाने के लिए. Zinta's character of Ambar is the NRI's NRI—ambitious, independent, an aspiring surgeon. अंबर के जिंटा चरित्र है एनआरआई एनआरआई-महत्वाकांक्षी, स्वतंत्र, एक महत्वाकांक्षी सर्जन है. Khan's Nick is much less responsible—so you can only imagine his reaction to the news that Ambar is pregnant. खान निक है बहुत कम जिम्मेदार, तो आप केवल खबर के लिए उनकी प्रतिक्रिया की कल्पना कर सकते हैं कि अंबर गर्भवती है. This movie is among the few Bollywood movies that develops the relationship between the two protagonists, choosing witty dialogue over endless song. इस फिल्म के कुछ बॉलीवुड फिल्मों है कि दो मुख्य पात्र के बीच संबंध विकसित, अनंत गीत पर मजाकिया बातचीत को चुनने के बीच है. The depiction of Australians is bizarre but refreshing to see overseas Indians making friends among the natives, for a change. ऑस्ट्रेलिया के चित्रण विचित्र लेकिन ताज़ा के लिए एक बदलाव के लिए मूल निवासी के बीच में विदेशी भारतीयों दोस्त बनाने, देख रहा है. – S. Mitra Kalita - एस कलिता मित्रा
Monsoon Wedding मानसून वेडिंग
This film could have been an Indian version of "My Big Fat Greek Wedding" but lacked some of the humor. इस फिल्म "मेरे बिग फैट ग्रीक वेडिंग 'का भारतीय संस्करण किया गया है लेकिन हो सकता है कुछ हास्य का अभाव है. It excelled, however, at depicting the grand orchestration required to create the perfect wedding for a city girl marrying an NRI. यह उत्कृष्ट है, लेकिन भव्य के लिए एक शहर के एक एनआरआई से शादी लड़की के लिए सही शादी बनाने के लिए आवश्यक आर्केस्ट्रा चित्रण पर. A wedding staged despite the fact that she happens to still be in love (and sleeping!) with her former boss, who also happens to be married. एक शादी के तथ्य यह है कि वह अभी भी प्यार में हो उसके पूर्व मालिक है, जो भी से शादी होने के साथ (और सो!) होता है के बावजूद मंचन किया. Several subthemes provide interesting twists to the story, including a case of incest and a heartwarming inset love story between a wedding planner and maid. कई subthemes कहानी को दिलचस्प twists अनाचार का मामला है और एक शादी के योजनाकार और नौकरानी के बीच एक दिली इनसेट प्रेम कहानी भी शामिल है प्रदान करते हैं. The bride's harried father and younger sibling, an overweight boy mollycoddled by his mother, are characters you are unlikely to forget. दुल्हन परेशान पिता और छोटा भाई, एक अधिक वजन उसकी माँ द्वारा mollycoddled लड़का, वर्ण आप भूल की संभावना नहीं है रहे हैं. – Anusha Shrivastava - अनुषा श्रीवास्तव
Bollywood Calling बॉलीवुड कॉलिंग
If you find the typical Bollywood song-and-dance fare and over-the-top melodrama painful, "Bollywood Calling" (2001) is the perfect movie for you. यदि आप विशिष्ट बॉलीवुड गीत व नृत्य किराया और ऊपर-the-शीर्ष नाटकीयता दर्दनाक मिल जाए, 'बॉलीवुड कॉलिंग' (2001) है आप के लिए सही फिल्म. Director Nagesh Kukunoor gives us an inside peek into the idiosyncrasies of the Bollywood film industry in this comic satire. निर्देशक नागेश कुकनूर हमें इस हास्य व्यंग्य में एक बॉलीवुड फ़िल्म उद्योग के idiosyncrasies में अंदर झांकना देता है. The movie's central character, Subramanian (Om Puri), son of a make-up man and an assistant in 75 films, finally gets his break to produce his own movie. फिल्म के केंद्रीय पात्र, (ओम पुरी) सुब्रमण्यम, एक मेकअप आदमी के बेटे और 75 फिल्मों में एक सहायक, अंततः उसकी टूट जाता अपनी ही फिल्म का निर्माण. Subramanian casts Pat (Pat Cusick), a struggling Hollywood actor looking to escape from his personal and professional miseries, and Manu Kapoor (Naveen Nischol), a quintessential Bollywood hero who is egotistical and in constant need of attention and adulation. सुब्रमण्यम (पैट Cusick) पॅट, एक संघर्षरत हॉलीवुड के लिए अपने निजी और पेशेवर दुख से बच रहे अभिनेता और मनु (नवीन निश्चल) कपूर, एक quintessential बॉलीवुड हीरो, जो घमंडी और ध्यान और मनुहार की लगातार जरूरत है न डाले. Subramanian embarks on his mission to produce his first super-duper hit film, a movie that has all emotions, few songs, plenty of fight scenes, and a 'different' story about (what else, but) two brothers separated in childhood – an Indian dacoit and an American engineer, and all that without a written script and any pre-production. अपने मिशन पर सुब्रमण्यम embarks अपने पहले सुपर duper हिट फिल्म निर्माण करने के लिए, एक फिल्म है कि सभी भावनाओं, कुछ गाने की है, खूब लड़ाई के दृश्य की, और एक 'अलग' के बारे में कहानी (और क्या है, लेकिन) दो भाई बचपन में अलग - एक भारतीय डकैत और एक अमेरिकी इंजीनियर, और यह सब एक प्रश्न के लिखित स्क्रिप्ट और किसी भी पूर्व उत्पादन के बिना. The movie lacks a bit in production quality, typical of the early Kukonoor movies, but makes it up for it with witty dialogues and well-defined characters. फिल्म निर्माण की गुणवत्ता में एक सा है, जल्दी Kukonoor फिल्मों की खासियत का अभाव है, लेकिन यह बनाता है ऊपर मजाकिया संवादों और अच्छी तरह से परिभाषित पात्रों के साथ इसके लिए. – Rama Sadasivan - सदाशिवन राम
The Namesake नेमसेक
When is the movie ever better than the book? फिल्म कब है कभी किताब से बेहतर है? When it's directed by Mira Nair and has some of Bollywood's best in starring roles. जब वह मीरा नायर द्वारा निर्देशित है और बॉलीवुड अभिनीत भूमिकाओं में सबसे अच्छा है के कुछ है. Tabu and Irfan Khan ages as beautifully as wine and this adaptation of Jhumpa Lahiri's book becomes their story. तब्बू और इरफान खान के रूप में शराब के रूप में खूबसूरती और झुंपा लाहिड़ी है पुस्तक के इस अनुकूलन उम्र उनकी कहानी बन जाती है. Indians overseas will laugh and cry at the familiar, intimate scenes of immigrant life, from the laundry lugged up and down a city block to the middle-of-the-night phone call bearing bad news. भारतीय विदेशी हंसी और आप्रवासी जीवन के परिचित, अंतरंग दृश्यों में रोना होगा, से कपड़े धोने तक lugged और नीचे मध्यम के-the-रात फोन के असर कॉल बुरी खबर के लिए एक शहर ब्लॉक.
S. Mitra Kalita - एस कलिता मित्रा
इन के अलावा, अनिवासी भारतीय का सबसे उत्कृष्ट प्रस्तुति है आर बाल्की 'Cheeni कुमारी कि सीसा अभिनेता बुद्धदेव (अमिताभ बच्चन) और नीना गुप्ता वर्मा (तब्बू) हिंदी भाषी समुदाय के लिए संबंधित के रूप में लंदन में बस गए चित्रित किया है. 
 इस बात का ज्यादा प्रवासी पहचान की खोज की फिल्मों में प्रतिनिधित्व किया है. Salaam Namaste is an exception, however, where the hero is a chef, the heroine is a radio jockey and they begin to live together in Australia. सलाम नमस्ते एक अपवाद है, लेकिन, जहां नायक एक रसोइया है, नायिका एक रेडियो जॉकी है और वे ऑस्ट्रेलिया में एक साथ रहना शुरू.
आगाज़ , अस्तित्व , बादल , बवंडर , बिछु , चल मेरे भाई , तरकीब , हद कर दी आपने , हे राम , जंगल , खिलाडी 420 , कुरुशेत्र , क्या कहना , फिर भी दिल है हिन्दुस्तानी , अभय , अजनबी , अक्स ,आमदनी अठानी खर्चा रूपैया,आशिक बनाया आपने , चांदनी बार , कसूर, मोहब्बतें , नायक , प्यार इश्क और मोहब्बत , यादें , तुम बिन , जुबेदा, फिलहाल , खाकी , ना तुम जाने ना हम , शक्ति , पिंजर, सत्ता , तहज़ीब , तेरे नाम , यह दिल , अंदाज़, भूत , बूम, चलते चलते , हासिल , जोगेर्स पार्क , ऊप्स ,आन , अब तुम्हारे वतन साथियों , चमेली ,चारस, दिल मांगे मोर, गर्लफ्रेंड , फ़िदा , मकबूल , मस्ती , स्वदेश ,  बेवफा , दस , फरेब , जो बोले सो निहाल , क्यूंकि , लकी , मंगल पांडे , वाटर , कॉरपोरेट, खोसला का घोसला,  ओमकारा , विवाह , अनवर , अपने , भेजा फ्राई,  चीनी कम ., एक लव्य , ट्राफीक सिग्नल , आ वेदनेसदे , देशद्रोही, फैशन , सरकार राज , हेल्लो , गोलमाल रिटन , स्लमडॉग करोडपति , दिल्ली ६ , पा  , लुक्क , कमीने,वीर , रण , मई नेम इस खान , पाठशाला , हाउस फुल , बदमाश कंपनी ,रोबोट , रावन अनजाना अनजानी, अल्लाह के बन्दे , बैंड बजा बाराती, तीस मार खां.....    

nri filme 2001 2010

कहो ना प्यार है , जोरू का गुलाम , मानसून वेद्डिंग, कभी ख़ुशी कभी ग़म, दिल चाहता है , अजनबी , रहना है तेरे दिल में , आवारा पागल दीवाना , बॉलीवुड होलीवुड , मेरे यार की शादी है , मुझसे दोस्ती करोगी, शक्ति , कल हो ना हो , में प्रेम की दीवानी हूँ , आउट ऑफ़ कंट्रोल, हम तुम , फ़िदा , ग्रीन कार्ड फॉरएवर, आई प्रऑड तो बी एन इंडियन , गरम मसाला , सलाम नमस्ते ,सरकार ,दीवाने हुए पागल , जो बोले सो निहाल ,रामजी लन्दन वाले , विरुद्ध , कृष , रंग दे बसंती , कभी अलविदा ना कहना , भागम भाग ,फॅमिली ,रोकी , ॐ शांति ॐ , पार्टनर , हे बेबी , नमस्ते लन्दन ,आवारापन , वैलकम, सिंह इस किंग,  दोस्ताना ,सरकार राज , युवराज जन्नत , बचना ए हसीनो , लव आज कल , न्यू योर्क , ब्लू ,दिल्ली ६ , आल दा बेस्ट , मई नेम इस खान , हाउस फुल , काइट, राजनीति ,क्रूक , गुज़ारिश ,रोबोट ......   

10 best fil fo r year

कहो ना प्यार है , मोहब्बतें , मिशन कश्मीर , जोश ,रिफूजी  बादल, पुकार, धड़कन ,हरदिल जो प्यार करेगा, मेला , ग़दर एक प्रेम कथा , कभी ख़ुशी कभी गम ,लगान, इंडियन ,दिल चाहता है , अजनबी , चोरी चोरी चुपके चुपके, मुझे कुछ कहना है , जोड़ी नम्बर 1  , एक रिश्ता , देवदास ,राज़ , कांटे , ऑंखें , हम तुम्हारे है सनम , रिश्ते , आवारा पागल  दीवाना , साथिया, दीवानगी, कंपनी , कोई मिल गया , कल हो ना हो ,दा हीरो ,बागबान , मुन्ना भाई एम.बी .बी . एस , एल .ओ .सी कारगिल , चलते चलते , क़यामत, अंदाज़ ,  मैं प्रेम की दीवानी हु , वीर ज़ारा , मैं हु ना , मुझसे शादी करोगी , धूम , खाकी , लक्ष्य , हम तुम ., मस्ती , हलचल , मर्डर , नो एंट्री , बंटी और बबली , मंगल पांडे , मैंने प्यार क्यूँ किया , गरम मसाला , सलाम नमस्ते ,सरकार , दस , वक़्त , काल , धूम २ ,कृष , लगे रहो मुन्ना भाई ,फ़ना , डान, रंग दे बसंती ., कभी अलविदा ना कहना , फिर हेरा फेरी , भागमभाग. विवाह , ॐ शांति ॐ , वेल्काम , चक दे इंडिया , तारे ज़मीन पर , पार्टनर , भूल भुलैया , हे बेबी , गुरु , तारा रम पम, नमस्ते लन्दन , गजिनी , रब ने बना दी जोड़ी , सिंह इज किंग , रेस, जोधा अकबर , जाने तू या जाने ना ., गोलमाल रिटन , दोस्ताना , बचना ए हसीनो , टशन , ३ इडिएट , लव आज कल अजब प्रेम की गज़ब कहानी , वांटेड ,न्यू योंर्क, कमीने ,आल दा बेस्ट , ब्लू , दिल्ली ६ ,पीपली लाइव , राजनीति , वंस उपन टाइम इन मुंबई , इश्किया , उड़ान , रोड , लव सेक्स और धोका , दबंग , गुज़ारिश , फस गया ओबामा |

2001 se vartmaan tak

इस दशक में जो वाक्य काफी प्रभावी रहा वह है "फिल्म जगत में सिर्फ दो ही स बिकते है - शाहरुख़ खान और सेक्स | ऐसा नहीं है कि इन दोनों विषयों के अलावा फिल्मे नहीं बनी ,पर जो प्रसार उनको मिला वो और किसी को नहीं | व्यवसायिकता, फिल्म जगत पर इस कदर हावी हो गई कि निर्माताओ को फिल्मों से बने पैसों के अलावा और कुछ दिखाई नहीं दे रहा | चाहे वोह नंगे बदन दिखा कर ही क्यों ना कमाया जा रहा हो | यह समय फिल्म जगत के इतिहास कि कुछ बड़े बजट की फिल्मों के लिए भी याद किया जाएगा | इनमे से कुछ है देवदास, दा हीरो, कोई मिल गया, दा राइजिंग, जोधा अकबर, कृष ,सिंह इस किंग, ब्लू ,शिवाजी, लव स्टोरी 2050 आदि |
  मूल्य विहीनता और ओछेपन की बात की जाए,तो भी ये दशक अव्वल नंबर का कहा जाएगा | तोबा तोबा, फ़न,हवस,जुली,जिस्म ,पाप , मर्डर,  कुछ ऐसी फिल्मे है जो मात्र पैसा कमाने के लिए बनाई गयी | इन फिल्मों ने न सिर्फ भारतीय फिल्मों का स्तर गिराया है बल्कि सामाजिक उन्माद को बढावा देकर नारी की प्रवित्र छवि को ठेस पहुंचायी है |
          इस दशक में पुरानी फिल्मों को एक नया लिबास में लपेटकर नये अंदाज़ में दर्शको के सामने प्रस्तुत किया गया | मुग़ल ए आज़म, ताजमहल,नया दौर, रामू की आग आदि  ऐसी ही फिल्मे है | कुछ निर्देशक लीक से हटकर फिल्म बनाने के लिए प्रचलित रहे | जिसमे हम दिल दे चुके सनम,ब्लैक, गुज़ारिश के संजय लीला भंसाली, लगान के आशुतोष गोवारिकर,कंपनी, फूँक, भूत,जंगल, आदि के  लिए राम गोपाल वर्मा और फिल्म पेज थ्री, फैशन,ट्रेफिक सिग्नल आदि फिल्मों  के  लिए मधुर भंडारकर आदि  प्रमुख रहे |  
  यह दशक अपनी उच्च कोटि के अभिनय और अदभुत तकनीक के लिए भी याद किया जाएगा |दिल चाहता है,कल हो ना हो, मुन्ना भाई एम बी बी एस ,मोहब्बतें , मैं हूँ ना , मई नेम इस खान आदि कुछ ऐसी ही फिल्मे है | आमिर खान की फिल्म "लगान" ने दर्शको को प्रभावित किया और यह फिल्म ओस्कर के लिए भी नामांकित की गई | इस अवधि की एक और विशेषता हिंगलिश फिल्मों का निर्माण रही | यह फिल्मे विदेशी तथा भारतीय सिनेमा का मिला जुला रूप रही | इन फिल्मों ने ना सिर्फ भारतीय जनता को बल्कि विदेशो में रह रहे अप्रवासी भारतीयों को प्रभावित किया | बेंड इट लाइक बेख्क्हम, मोंसून वेद्डिंग , मई नेम इस खान , कल हो ना हो , नमस्ते लन्दन आदि ऐसी ही फिल्मे है | 

film itihas 2

दक्षिण भारत में फिल्म उद्योग कि नीव आर.नटराज मुदलियार ने रखी |उन्होंने दक्षिण भारत की पहली कथा फिल्म "कीचक वधंम" का निर्माण 1919 में किया | द्वारका दास संपत बम्बई में फिल्मों का प्रभुत्व बनाने वाले व्यक्तियों में से एक थे | 1918 में उन्होंने 'राम बनवास' नाम से भारत के पहले धारावाहिक फिल्म का निर्माण किया | 1919 में उन्होंने 'कोहिनूर फिल्म कंपनी' का निर्माण किया, जिसके बैनर तले कटोरा भर खून (बम्बई में बनी पहली सामाजिक फिल्म ),भक्त विधुर (1921),काला नाग (1924) आदि फिल्मों का निर्माण हुआ | बम्बई स्तिथि कोहिनूर स्टूडियो को एक समय में वो ख्याति प्राप्त थी,जो हालीवुड में एम.जी.एम को प्राप्त थी | अपने इस योगदानो की बदोलत 'द्वारका दास संपत' को बम्बई फिल्म उद्योग का जनक मन गया |                                            उत्तर भारत में स्थापित होने वाली पहली कंपनी 'द ग्रेट इस्टर्न फिल्म कॉर्पोरेशन लि,' थी | इसकी स्थापना 1924 में पंजाब में हिमांशु राय ने की थी | इसके अंतर्गत बनी फिल्म 'लाइट ऑफ़ एशिया' लन्दन में दस महीने चली | अंतराष्ट्रीय क्षत्र में भारत को प्रशिष्ठा दिलाने वाली यह पहली फिल्म थी |
                           बंगाल में फिल्म उद्योग के स्थापक के रूप में जिस व्यक्ति को ख्यति प्राप्त है,उनको लोग मदन लाल साहब के नाम से जानते है | इन्होने फाल्के कि फिल्म को बंगाल में प्रदर्शित किया | 1927 तक पूरे भारत वर्ष के 346 सिनेमाघरों में 86 इन्ही के थे | इन्होने 1907 में कलकात्ता में 'एलफिस्टन पिक्चर पेलेस' नाम से प्रथम स्थाई सिनेमाघर का निर्माण किया | बंगाल का प्रथम कथा चित्र विल्ब मंगल भी इन्ही कि कृति थी |
                    1931 में भारत कि पहली सवाक फिल्म 'आलमआरा' का निर्माण आर्देशिर इरानी ने किया | और एक बार फिल्मों को ज़बान क्या मिली,उन्होंने फिर कभी मुडकर नहीं देखा | भारत में एक्शन और साहसिक कारनामो से भरी फिल्म बनाने का श्रेय वाडिया बंधूओ को प्राप्त है | जे.बी.एच. वाडिया ने छोटे भाई होमी वाडिया के साथ मिलकर हालीवुड कि एक्शन फिल्मों से प्रभावित हो कई स्टंट फिल्मों का निर्माण किया | उनकी पहली फिल्म 'थंडर बोल्ट' थी | इनकी अन्य स्टंट फिल्मों में लाइनमैंन (1932 )   हिवल विंड (1933 ),दिलरुबा डाकू (1933 ) आदि मुख्य थी |
          1918 में चलचित्र उद्योग कि देख तात्कालीन ब्रिटिश सरकार ने 'सिनेमाटोग्राफ  एक्ट' पास किया | 1920 में प्रथम इंडियन फिल्म सेंसर बोर्ड कि स्थापना हुई | उस समय बोर्ड का मुख्य उद्देश्य फिल्मों को राष्ट्रवादी विचार धारा एवं सरकार विरोधी भावना के प्रभाव से बचे रखना मात्र था | इसी आधार पर कोहिनूर फिल्म कंपनी कि 'भक्त विदुर' पूर्ण रूप प्रतिबंधित कर दी गयी | बंगाल में 1922 और बम्बई 1923 में ब्रिटिश सरकार द्वारा मनोरंजन कर लागू कर दिया गया | प्रारंभिक भारतीय फिल्मे पचिमी देशो कि फिल्मों कि तुलना में तकनीकि एवं कलात्मकता के लिहाज़ से कमतर थी | लेकिन इन फिल्मों ने कुछ कहे ही, भारतीयों को उनकी शक्तियों को दर्शाया | सामाजिक फिल्मों के द्वारा भारतीयों को उन में बसी समस्याओ के बारे में बताया गया और उनसे निजात पाने के रास्ते भी सुझाए गए | महिला सशक्तिकरण कि विचार धारा भी फिल्मों के माध्यम से दर्शको तक पहुंचायी गई | महान साहित्कारो के उपन्यास तथा कहानिया फिल्मों के माध्यम से आम जनता तक पहुंचायी गई | अतंत: प्रारंभिक फिल्मों ने लोगो को मनोरंजन प्रदान करने के साथ साथ समाज के प्रति सचेत भी किया | क्या सही- क्या ग़लत तर्क करने कि बुद्धि प्रदान कि और उनमे नई कांति को संचारित किया |

Saturday, February 5, 2011

film itihaas

तकनिकी पहलुओ को दरकिनार कर देखा जाए,तो भारत वर्ष में सिनेमा के दुसरे तत्व काफी पहले से मोजूद थे | लोकनाटक, कठपुतली कला आदि के रूप में अभिनय तथा उसका मंचन प्रारंभ हो चूका था | परन्तु इन सब चीजों को काल्पनिकता में पिरो कर परदे पर साकार करने का कार्य कैमरा तथा तकनीकी उपकरण के अविष्कृत हो जाने के बाद ही मूर्त रूप ले सका | फोटोग्राफी के आविष्कार के साथ ही 1820 में ओप्टिकल खिलोने के रूप में सिनेमा कि नीव रख दी गयी थी | 1878 में एडवर्ड मुयाब्रिज ने जोट्रोप पर एक मिनट में केई तस्वीरे दिखाकर चित्रों में गतिशीलता लाने कि सफल कोशिश कि तप्त्पश्चात 1890 में केइनेतो - स्कोप का अविष्कार किया और चलचित्र प्रभाव को नया आयाम दिया  |इतना कुछ होने के बाद भी उस समय किसी ने यह नहीं सोचा होगा कि  सिनेमा संचार के इतने सशक्त माध्यम के रूप में उभरेगा |
   भारत में फिल्मों कि शुरुआत मूक फिल्मों के साथ हुई और ये दौर 1930 तक चला | श्री हिरा लाल सेन को भारत में चलचित्र का जनक मन जाता है | 1898 में उन्होंने राल्स बाईस्कोप कंपनी बनाई और चलचित्रों का प्रदर्शन किया | उन्होंने स्वनिर्मित कैमरे से 1901 से 1905 के बीच में बारह नाटक का फिल्म्कान किया | सेन ने ही सर्वप्रथम विज्ञापन फिल्मों का निर्माण प्रारंभ किया | उन्होंने अपनी फिल्मों में नये कोण से छायाकान,क्लोज-अप, टॉयटल्स प्रदर्शन आदि तकनीक का प्रथम प्रयोग किया |
         सवे दादा तथा हिरा लाल सेन के बाद चलचित्र निर्माण में कई लोगो ने अपना योगदान दिया |जैसे - के थाने वाला ,प्रो.एडरसन,जमशेद जी मदन आदि | पर वह व्यक्ति जिसने फिल्म जगत का स्वरुप ही बदल कर रख दिया, वो थे दादा साहब  फाल्के | उन्होंने भारत कि पहली कथा फिल्म राजा हरीशचंद का निर्माण 1913 में किया |  यह उन्ही के अथक प्रयासों का परिणाम था कि भारतीय फिल्म उद्योग ने समाज में अपनी जड़े जमानी शुरू कि |अपने इन्ही प्रयासों के बदोलत दादा साहब को भारतीय फिल्मों के जन्मदाता कि उपाधि से नवाज़ा गया |
      "राजा हरीशचंद" दादासाहब फाल्के के अथिक परिश्रम का परिणाम थी | इस फिल्म को बनाने में उन्हें आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ा | आठ महीने के संघर्ष के उपरात जब यह मूक फिल्म तैयार हुए,तो  दादा साहब फाल्के को उनकी म्हणत का प्रतिफल मिला | इस फिल्म से हुई अपार सफलता का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि एकत्रित आय को बैलगाड़ीयो से पोलिसे के देख रखाव में एक जगह से दूसरी जगह ले जाया जाता था | उन्होंने 1913 में ही मोहिनी भरमासुर और 1914 में सावित्री सत्यवान का निर्माण किया | तकनिकी दृष्टि दादा साहब फाल्के कि ये फिल्मे बेजोड़ थी | 1918 में दादा साहब फाल्के  ने हिंदुस्तान फिल्म कंपनी बनाई और उसके अंतरगत कई मशहूर फिल्मों का निर्माण किया | उन्होंने कथा फिल्मों के साथ साथ लघु फिल्मे/ डाक्युमेंट्रीयो का कि निर्माण किया | 64 वर्ष कि आयु में  उन्होंने एक सवाक फिल्म गंगोवतरन 1937 में बनाई | यह उनकी आखिरी फिल्म थी | 1937 में दादा साहब फाल्के ने फिल्म निर्माण से अलविदा भले ही कह दिया हो, पर तब तक उन्होंने भारतीय फिल्म जगत को वो नीव प्रदान कर दी थी,जिसके बल पर आज भारतीय सिनेमा जगत, जिसे हालही में सरकार द्वारा एक उद्योग का दर्जा प्राप्त हुआ है, कि गगनचुबी ईमारत शान से खाड़ी है | 







निष्कर्ष
तमाम अन्य बातों पर दीगर करने पर एक बात तो स्पष्ट रूप से सामने आती है कि एंग्री यंगमैंन वाले चरित्र निरीह हो उठे और उसकी जगह ले ली हलके फुल्के चोकोलेटी युवओं ने जो प्रेम के लिए सब कुछ त्यागने  को तैयार रहते थे | मुख्य कथानक का मुख्य चरित्र अब पहले जैसे ग्रामीण युवक न होकर एक ऐसा व्यक्ति होता है जो बचपन से विदेशो में रह और अपनी युवावस्था में किसी कार्य को करने के लिए अपने देश लौट जाते है और बाद में वोह हीरो बन जाते है | खैर इसका प्रभाव भारतीय सिनेमा पर साकरात्मक अर्थो में हुआ | लोग उब चुके थे और सिनेमा में नयापन देखने के इच्छुक थे, और फिल्मों में यह एक प्रयोग था जिसका दर्शको में ज़बरदस्त प्रभाव पड़ा और भारतीय जन जीवन जो गाँव में बसते है उठकर सुन्दर देशो में कैमरे द्वारा सैर करने लगे | सहजता से अंग्रेजी बोलते पात्र,सबको प्रभावित करने लगे | और धीरे-धीरे यह पात्र रुपहले परदे पर छा गए | 

bhumika

हलाकि सिनेमा का कला के रूप में जन्म आज से 100 वर्ष पूर्व हो चूका था | अगर भारतीय सिनेमा को देखे तो दो भागो में बटा | स्पष्ट रूप से दुष्टिगोचर होता है | एक तो 1913 - 1930 - मूक फिल्मों का दौर, 1931 - अब तक सवाक फिल्मों का दौर|
             भारतीय सिनेमा हर दस वर्ष में बदला |1931 के बाद ४० तक समाजिक  फिल्मों का दौर रहा | 1948 में राजकपूर की 'बरसात' से रोमांटिक इरा की शुरुआत हुई और इसी का फेनेटिक रूप 1990 के वर्षो में दुष्टिगोचर होता है | जैसे की प्रेम प्रसंगो पर कहानी का ताना बाना , और मुख्य चरित्र का किसी बाहरी देश से आना | अर्थात N.R I चरित्र | दिलवाले दुल्हनिया ले जाएँगे  से  N.R I चरित्र फिल्मों का मुख्य किरदार बना | तमाम पुराने मिथक और दरे में बदलाव आया | ये चरित्र फैंटेसी से गड़ा गया | एक स्तेरियोपइप चरित्र होते है जो अपना प्रेम प्राप्त करने के  लिए सात समंदर पार से आते है | और अपनी महबूबा को अपने साथ ले जाते है | और इस तरह N.R I चरित्रकी भूमिका दर्शको के सामने आइ |